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सब-कुछ ठीक-ठाक नहीं है / सुदर्शन वशिष्ठ
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21:18, 17 फ़रवरी 2009
<poem>
लगता है कुछ चटक रहा है मेरे भीतर
धीरे-धीरे
कोई घातक रोग छिपा बैठा है
पल रहा है
कुछ घुमड़ रहा है
चैन से बैठने नहीं देता
प्रकाश बादल
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