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'''शीर्षक:'''जिसकी हममें कमी है, दोस्तोमांझी !न बजाओ बंशी<br> '''रचनाकार:''' [[आंद्री पिअरकेदारनाथ अग्रवाल]] (स्विस कवि)
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जिसकी हममें कमी है, दोस्तोमांझी !वह है साहसन बजाओ बंशी मेरा मन डोलता
उस समय बोलने का साहसमेरा मन डोलता है जैसे जल डोलता जब शब्द जल रहे हों;का जहाज जैसे पल-पल डोलता पत्थर को पत्थर कहने मांझी ! न बजाओ बंशी मेरा प्रन टूटता मेरा प्रन टूटता है जैसे तृन टूटता तृन कानिवास जैसे बन-बन टूटता मांझी ! न बजाओ बंशी मेरा तन झूमता मेरा तन झूमता है तेरा तन झूमता ख़ून को ख़ूनऔर डर को डरमेरा तन तेरा तन एक बन झूमता ।
एक दिन, जब वह बड़ी बर्फ़ आएगी
हहराती हुई
तब कठिन होगा
ख़ुद को समझ पाना
अनुवाद : विष्णु खरे
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