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मेरा घर / आग्नेय

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|रचनाकार=आग्नेय
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<Poem>
यह घर जो मेरा घर है
मेरे लिए अपमान का घर हो गया है
इसकी हर चीज़ जो मेरे लिए लाई गई
अचानक मुझसे ही घृणारत है।
इस अपमान के घर को
अब मुझे छोड़कर जाना ही होगा
रेत का महल है मेरा घर,
अपमान का घर इसी तरह का होता है
ताश का घर है मेरा घर,
तिरस्कृत का घर इसी तरह का होता है
पल भर में उसे ढह जाना है
उसे रौंद दिए जाने वाले पैर उठ चुके हैं
हवा चल चुकी है-
उड़ जाने वाला है मेरा घर
इस घर में दब जाने के पहले ही
मुझे इस घर से
चुपचाप खिसक जाना है
</poem>