{{KKRachna
|रचनाकार=हेमंत हेमन्त जोशी
}}
<poem>
'''पिता'''
रात के अंतिम पहर में
नींद के बीहड़ से मीलों दूर
झांकने पर भीतर
दीखता है तुम्हारा रक्त -रंजित ललाट
तुम वह नहीं थे जो हो
लौट आता हूँ सहम कर
मेरे भीतर
बंद दरवाज़े के पीछे
तुम्हारा रक्त -रंजित ललाट।
मैं नहीं ढो सकता पिता
हाँ! रातों में
नींद के बीहड़ से दूर
लौट आउँगा आऊँगा तुम्हारे पास
बैठेंगे अलाव के आस-पास
खोलेंगे अपनी-अपनी पोटली