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00:39, 26 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुधा ओम ढींगरा
}}
<poem>
कभी-कभी
मन की
उद्वेलना
मस्तिष्क में
स्मृतियों को
सपंदित
उत्तेजित
झंकृत कर
रतजगा है करवाती .
हृदय की
पोटली में बंधे
एहसास
अनुभूतियाँ
स्पर्श
खुल-खुल कर
विचलित हैं करते .
पुराने जर्जर
पीले पड़े पत्र
उद्धव का संवाद से
गोकुल में भटकती
ग्वालिन के
व्यथित हृदय
पीड़ित मस्तिष्क में
नई संचेतना
संचारित हैं करतें .
ऐसे में
कल्पना
सोच
मन में
तुम्हें
करीब पा
अपनी वेदना की पीड़ा
से निवृति हूँ पाती .
</poem>