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मन घबराता है / सुधा ओम ढींगरा

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<poem>
जब भी मेरा मन
घबराता है
मस्तिष्क --
तेरी यादों में
डूब जाता है.

रात
आँखों में
कटने लगती है--
तेरे एहसास से
चैन आता है.

उलझनों से घिरे
मन औ'
बेचैन मस्तिष्क को--
एक नया साहस
बंध जाता है.

सोचों में करीब
पा कर तुझे
ग़म से छुटकारा पा--
वेदना को नया
मार्ग मिल जाता है.



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