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17:16, 5 मार्च 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=ज़ौक़
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[[category: ग़ज़ल]]
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आज उनसे मुद्दई कुछ मुद्दआ कहने को है
यह नहीं मालूम क्या कहवेंगे क्या कहने को है
देखे आईने बहुत, बिन ख़ाक़ हैं नासाफ़ सब
हैं कहाँ अहले-सफ़ा, अहले-सफ़ा कहने को हैं
दम-बदम रूक-रुक के है मुँह से निकल पड़ती ज़बाँ
वस्फ़ उसका कह चुके फ़व्वारे या कहने को है
देख ले तू पहुँचे किस आलम से किस आलम में है
नालाहाए-दिल<ref>दिल का रोना</ref> हमारे नारसा<ref>लक्ष्य तक न पहुँचने वाले</ref> कहने को है
बेसबब सूफ़ार<ref>तीर का मुँह</ref> उनके मुँह नहीं खोंलें है 'ज़ौक़'
आये पैके-मर्ग<ref>मृत्यु का दूत</ref> पैग़ामे-क़ज़ा कहने को है
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