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वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे बेश्तरपेश्तर, वो करम के हाथ था मेरे हाथ हाल पर <br>मुझे सब हैं है याद ज़रा-ज़रा, तुम्हें याद हो कि के न याद हो
कभी बैठे सब हैं में जो रू-ब-रू तो इशारतों ही से गुफ़्तगू <br>वो बयान शौक़ का बरमला तुम्हें याद हो कि के न याद हो   किया बात मैं ने वोह कोठे की, मेरे दिल से साफ़ उतर गई <br>तो कहा के जाने मेरी बाला, तुम्हें याद हो के न याद हो
वो बिगड़ना वस्ल की रात का, वो न मानना किसी बात का <br>
वो नहीं-नहीं की हर आन अदा, तुम्हें याद हो कि के न याद हो
जिसे आप गिनते थे आश्ना जिसे आप कहते थे बावफ़ा <br>
मैं वही हूँ "मोमिन"-ए-मुब्तला तुम्हें याद हो के न याद हो
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