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|रचनाकार=रेने देपेस्त्र
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<poem>
उठो! ओ मेरे अफ़्रीकी
अपनी काली चमड़ी के आहत गुलाब के लिए उठो
उठो ओ मेरे अफ़्रीकी
अपनी रात की रानी की नोंची गई हरेक पंखुड़ी के लिए उठो

उठो दक्षिण अफ़्रीका के हर कीचड़ भरे गड्ढे के लिए
कि वह तूफ़ानी वसंत के बवंडरों से तुम्हारे पद चिह्नों को सोख सके
कि बिखरे खून की चमक मिटाने का साहस कोई न करे

अपनी जनता की भरी-पूरी खुशहाली ओढ़
जा मेरे अफ़्रीका!
विश्व की उम्मीदों पर सवार हो
और तू लौट प्रबुद्ध हो कर
मिलाए गए सभी हाथों से
सभी पढ़ी गई किताबों से
बाँट कर खाई गई रोटियों से
उन सभी औरतों से जिनसे तूने संगति की होगी
उन सभी दिनों से जिन्हें जोता होगा तूने
कि मानवता का सुनहरा अनाज उपज सके।


</poem>



'''मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी
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