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11:14, 15 मार्च 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=लुई आरागों
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हम खोजते हैं व्यर्थ ही स्मृतियाँ स्कूली बच्चों के नंगे चेहरों की। वह तो गुजर गए हैं सराय के केलेंडरों की तरह जहाँ घास काटने के यंत्रों की शाश्वत मुद्रा है और जो उसकी पेटी में लगी दरातियों के लहराने से भी ज़्यादा अबूझ हैं। हम स्वतः सीखते हैं पेंसिल-डिबिया का काला बीज गणित, सतत शैतानी से देखते हैं लड़कियों की गुलाबी जंघाएँ और बेंचों या औरत के चश्मे से भी कोमल बच्चों के झबरे बाल। मैं जौ पीटने वाली मशीन की बात करना चाहता हूँ, जो चलती है उनके हाथों पर खामोश और सोच में डूबी हुई घड़ी का अनुसरण करते हुए और बिखेरती है सिरों पर चूके हुए कामचोरी के सुनहरे क्षण दण्ड के विशाल पहिए के करिश्मे से।
-काफ़े ला सूर्स, बूलवार सें-ज़ेरमें
लेक्रित्युर ओतोमातीक से (जुलाई 1919)से
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'''मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी