|संग्रह=
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[[Category: कविता]]
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म्यांमार की सड़कों पर ख़ून नहीं था
रोशनी भी नहीं थी वहाँ
हवा बंद थी सीखचों में
और चुप थी दुनिया
चुप थे लोग
कि म्यांमार की सड़कों पर ख़ून नहीं था
म्यांमार के लोगों का ख़ून बहुत गाढ़ा नहीं था
बहुत मोटी नहीं थी उनकी ख़ाल
बहुत गहरी नहीं थी उनकी नींद
बहुत हल्के नहीं थे उनके सपने
बहुत रोशनी नहीं थी उनके घरों में
म्यांमार की सड़कों पर ख़ून नहीं था<br>एक लड़कीरोशनी भी नहीं जो हवा थी वहाँ<br>हवा बंद थी सीखचों सींखचों में<br>और चुप बहुत चीख़ नहीं रही थी दुनिया<br>वोचुप थे लोग<br>बस सोच रही थीकि म्यांमार सींखचों की बाबतसड़कों पर ख़ून नहीं था<br><br>की बाबतलोगों की बाबतम्यांमार की बाबत
जब कि म्यांमार के लोगों का की सड़कों पर ख़ून बहुत गाढ़ा नहीं था<br>बहुत मोटी नहीं जरूरत थी उनकी ख़ाल<br>हवा कीबहुत गहरी नहीं और हवा कैद थी उनकी नींद<br>सींखचों मेंबहुत हल्के नहीं लोग रहने लगे थे उनके सपने<br>भूखेबहुत रोशनी नहीं थी उनके घरों में<br><br>करने लगे थे आत्महत्याबग़ैर गिराए सड़कों पर एक बूंद ख़ून
म्यांमार की एक लड़की <br>जो हवा उलझन में थी<br>हवाबंद उलझन में थे लोगऔर चुप थी दुनिया और चुप थे लोगउधर सींखचों में<br>बंद हवाबहुत चीख़ नहीं टहल रही थी वो<br>बस सोच तलाश रही थी<br>आगजिसे भड़काकर वह जलाना चाहती थी शोलापिघलाना चाहती थी लोहे के सींखचों की बाबत<br>कोसड़कों की बाबत<br>पर हवा क़ैद थी सींखचों मेंलोगों की बाबत<br>लोग बंद थे घरों मेंम्यांमार और म्यंमार की बाबत<br><br>सड़कों पर ख़ून नहीं था
जब कि म्यांमार की सड़कों पर ख़ून नहीं था<br>जरूरत थी हवा की<br>और हवा कैद थी सींखचों में<br>लोग रहने लगे थे भूखे<br>करने लगे थे आत्महत्या<br>बग़ैर गिराए सड़कों पर एक बूंद ख़ून<br><br> उलझन में थी हवा<br>उलझन में थे लोग<br>और चुप थी दुनिया और चुप थे लोग<br>उधर सींखचों में बंद हवा <br>टहल रही थी<br>तलाश रही थी आग<br>जिसे भड़काकर वह जलाना चाहती थी शोला<br>पिघलाना चाहती थी लोहे के सींखचों को<br>पर हवा क़ैद थी सींखचों में<br>लोग बंद थे घरों में<br>और म्यंमार की सड़कों पर ख़ून नहीं था<br><br> यूँ कुछ भी कर सकते थे लोग<br>आ सकते थे घरों के बाहर<br>तोड़ सकते थे जेल की दीवारें<br>हवा को कर सकते थो आज़ाद<br>भड़का सकते थे आग पिघला सकते थे सींखचे<br>
पर म्यंमार की सड़कों पर ख़ून नहीं था।
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