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15:12, 17 मार्च 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=एवा लिसा मान्नेर
}}
<poem>
तुम्हें दिखाऊँगी वह राह
जिसपर चली थी मैं
अगर तुम आओगे
तुम अगर आओगे लौट कर
मुझे खोजते हुए किसी दिन
देखो!
सब कुछ बदल रहा है थोड़ा-थोड़ा हर पल
होता जा रहा है आडम्बरविहीन और आदिम
(जैसे बच्चों के बनाए हुए चित्र
जीवन के पहले-पहले रूप
आत्मा के अक्षर)
किसी गर्म जगह पर
कोमल और धुँधली सी जगह पर
तब वहाँ मैं नहीं दिखुँगी
वहाँ होगा एक जंगल
(मैं बन चुकी होऊँगी जंगल)
</poem>
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : हेमन्त जोशी