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साँचा:KKPoemOfTheWeek

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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''पुस्तकें फुटपाथ बिछौने हैं <br>&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[विश्वनाथप्रसाद तिवारीब्रजमोहन]]
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नही, इस कमरे में नहींउधरउस सीढ़ी के अपने नीचेउस गैरेज सड़कों के कोने में ले जाओपुस्तकेंवहाँ, जहाँ नहीं अट सकती फ्रिजजहाँ नहीं लग सकता आदमकद शीशाफुटपाथ बिछौने हैं
बोरी में बांध कर चट्टी से ढँक करकुछ तख्ते के नीचेकुछ फूटे गमले के ऊपररख दो पुस्तकेंकोई खिलौना मांग न बेटे! हम ही खिलौने हैं
ले जाओ इन्हें तक्षशिला- विक्रमशिला
या चाहे जहाँ
हमें उत्तराधिकार में नहीं चाहिए पुस्तकें
कोई झपटेगा पास बुक पर
कोई ढूंढ़ेंगा लाकर की चाबी
किसी की आँखों में चमकेंगे खेत
किसी के गड़े हुए सिक्के
हाय हाय, समय
बूढ़ी दादी सी उदास हो जाएँगी
पुस्तकें
पुस्तकों!कच्चे-पक्के, टूटे-फूटे जहाँ भी रख दें वेमन-सा घर का सपना पड़ी रहना इंतजार सपनों की दुनिया मेंही तो जीता है सुख अपना
आयेगा कोई न कोईदिग्भ्रमित बालक जरूरकिसी शताब्दी उजड़े हुए चमन मेंअंधेरे में टटोलता अपनी राहही तो सपने बोने हैं
स्पर्श से पहचान लेना उसेआहिस्ते-आहिस्ते खोलना अपना हृदयदुख के झूले पर जीवन की जिसमें सोया है अनन्त समयलम्बी पींग बढ़ाना और थका हुआ सत्यपत्ता-पत्ता नींद से जागे दबा हुआ गुस्साऎसे पेड़ हिलाना और गूंगा प्यारदुश्मनों के जासूसपकड़ नहीं सके जिसे!हार न जाना, छाँव-फूल-फल अपने होने हैं
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