गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
अजनबी शहर के / राही मासूम रज़ा
10 bytes added
,
12:19, 21 मार्च 2009
ज़ख्म जब भी कोई ज़हनो दिल पे लगा, तो जिंदगी की तरफ़ एक दरीचा खुला
हम भी
गोया
किसी साज़
की तरह हैं
के तार है
, चोट खाते रहे और गुनगुनाते रहे ।।
Ashish.shrivastava7
5
edits