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अजनबी शहर के / राही मासूम रज़ा
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12:21, 21 मार्च 2009
ज़ख्म
ज़हर
मिलता रहा, ज़हर पीते रहे, रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे,
जिंदगी भी हमें आज़माती रही, और हम भी उसे आज़माते रहे ।।
Ashish.shrivastava7
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