गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब / राहत इन्दौरी
No change in size
,
13:02, 21 मार्च 2009
मुझसे बिछड़ कर वह भी कहां अब पहले जैसी है
भीगे
फीके
पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब
Ashish.shrivastava7
5
edits