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{{KKRachna
|रचनाकार=अमेलिया हाउस
}}


<poem>
प्रसव के समय से आगे बढ़ी हुई
औरत सी
ओ मेरी जन्मभूमि
धीरे-धीरे चलती हो तुम
बोझ से भारी हैं तुम्हारे पाँव
धीरे-धीरे चलती हो तुम
और हम
नहीं कर पाते प्रतिक्षा
प्राकृतिक प्रसव की
हमें
जनवाना ही होगा तुम्हें
ज़बरन।

</poem>

'''अंग्रेज़ी से अनुवाद : हेमन्त जोशी
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