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'''शीर्षक: '''फुटपाथ बिछौने हैं रोटी और संसद <br> '''रचनाकार:''' [[ब्रजमोहनधूमिल]]
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अपने नीचे सड़कों के फुटपाथ बिछौने हैं एक आदमीरोटी बेलता हैएक आदमी रोटी खाता हैएक तीसरा आदमी भी हैजो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता हैवह सिर्फ़ रोटी से खेलता हैमैं पूछता हूं--'यह तीसरा आदमी कौन है ?'मेरे देश की संसद मौन है।
कोई खिलौना मांग न बेटे! हम ही खिलौने हैं
कच्चे-पक्के, टूटे-फूटे
मन-सा घर का सपना
सपनों की दुनिया में ही तो
जीता है सुख अपना
उजड़े हुए चमन में ही तो सपने बोने हैं
दुख के झूले पर जीवन की
लम्बी पींग बढ़ाना
पत्ता-पत्ता नींद से जागे
ऎसे पेड़ हिलाना
हार न जाना, छाँव-फूल-फल अपने होने हैं
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