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सेस गनेस महेस दिनेस / रसखान
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19:04, 6 सितम्बर 2006
जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥
नारद से सुक व्यास
रहे
रटें
, पचिहारे
तू
तऊ
पुनि पार न पावैं।
ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥
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घनश्याम चन्द्र गुप्त