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ख़ुशबुओं की तरह जो बिखर जाएगा / गोविन्द गुलशन
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17:07, 28 मार्च 2009
दर्द से रोज़ करते रहो गुफ़्तगू
ज़ख़्म गहरा भी हो तो
वो
भर जाएगा
वो न ख़ंजर से होगा न तलवार से
Govind gulshan
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