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कानन दै अँगुरी रहिहौं / रसखान

No change in size, 01:46, 8 सितम्बर 2006
कानन दै अँगुरी रहिहौं, जबही मुरली धुनि मंद बजैहै।
माहिनि मोहिनि तानन सों रसखान, अटा चड़ि चढ़ि गोधन गैहै पै गैहै॥
टेरी कहाँ सिगरे ब्रजलोगनि, काल्हि कोई कितनो समझैहै।
माई री वा मुख की मुसकान, सम्हारि न जैहै, न जैहै, न जैहै॥