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रसवन्ती (कविता) / रामधारी सिंह "दिनकर"
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12:37, 30 मार्च 2009
विकल मानवता का कल्याण, <br>
बैठ खण्डहर मे करता रहा <br>
कभी निशि-भर अतीत का ध्यान.
<br><br>
श्रवण कर चलदल-सा उर फटा<br>
दलित देशों का हाहाकार,<br>
देखकर सिरपर मारा हाथ <br>
सभ्यता का जलता श्रृंगार.<br><br>
S.K.Jhingan
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