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मुस्कुराकर चल मुसाफिर / गोपालदास "नीरज"
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02:12, 3 अप्रैल 2009
पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर॥<br><br>
कंटकित यह पंथ भी हो जायगा
आसमान
आसान
क्षण में,<br>
पाँव की पीड़ा क्षणिक यदि तू करे अनुभव न मन में,<br>
सृष्टि सुख-दुख क्या हृदय की भावना के रूप हैं दो,<br>
नदीम शर्मा
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