भू के मानचित्र पर अंकित त्रिभुज, यही क्या तू है ? <br>
नर के नभश्चरण की दृढ़ कल्पना नहीं क्या तू है ?<br>
भेदों का ज्ञाता, निगूढ़ताओं का चिर ज्ञानी है, <br>
मेरे प्यारे देश ! नहीं तू पत्थर है, पानी है।<br>
धर्म-दीप हो जिसके भी कर में वह नर तेरा है, <br>
तेरा है वह वीर, सत्य पर जो अड़ने आता है, <br>
किसकी किसी न्याय के लिए प्राण अर्पित करने जाता है।<br>
मानवता के इस ललाट-वंदन को नमन करूँ मैं ? <br><br>