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केंकड़ा / ज़ाक प्रेवेर

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|रचनाकार=ज़ाक प्रेवेर
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<poem>
वह सिर हिलाकर कहता है नहीं
मगर हाँ कहता है दिल से
वह हाँ कहता है उनसे जो प्यार करते हैं उसे
वह अध्यापक से कहता है नहीं
वह खड़ा है
सवाल पूछे जाते हैं उससे
कई प्रश्न रखे जाते हैं उसके सामने
अचानक विक्षिप्त हँसी उसे घेर लेती है
और वह सब कुछ मिटा देता है
संख्याएँ और शब्द
तारीखें और नाम
वाक्य और जाल
और अध्यापक की धमकी के बावजूद
शैतान बच्चों के शोरगुल में
हर तरह के रंगों की खड़िया से
दुख के श्यामपट पर
बनाता है सुख का चेहरा।

</poem>

'''मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी
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