Changes

प्रेम / पंकज चतुर्वेदी

1,174 bytes added, 18:07, 10 अप्रैल 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंकज चतुर्वेदी}} <poem> तुम्हारे रक्त की लालिमा से ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पंकज चतुर्वेदी}}
<poem>
तुम्हारे रक्त की लालिमा से
त्वचा में ऐसी आभा है
पानी में जैसे
केसर घुल जाता हो

आंखें ऐसे खींचती हैं
कि उनकी सम्मोहक गहनता में
अस्तित्व डूबता-सा लगे
अपनी सनातन व्यथा से छूटकर

भौंहों में धनुष हैं
वक्ष में पराग
तुम्हारी निष्ठुरता में भी
हंसी की चमक है
अवरोध जैसे कोई है नहीं
बस बादलों में ठिठक गया चन्द्रमा है

तुममें जो व्याकुलता है
सही शब्द
या शब्द के सौन्दर्य के लिए
वही प्रेम है
जो तुम दुनिया से करती हो !
</poem>
Anonymous user