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किशोर / व्योमेश शुक्ल
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20:16, 10 अप्रैल 2009
दुनिया में लौटना होता है किशोर को भी
विपत्ति है थियेटर घर फूँककर तमाशा देखना पड़ता है
दर्शक आते हैं या नहीं आते
नहीं आते हैं या नहीं आते
भारतेंदु के मंच पर आग लग गई है लोग बदहवास होकर अंग्रेजी में भाग रहे हैं
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