गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
साध / सुभद्राकुमारी चौहान
4 bytes added
,
09:02, 19 मई 2007
बनी हुई हो वहीं कहीं पर हम दोनों की पर्ण-कुटीर।। <br><br>
कुछ रूखा, सूखा खाकर ही पीतें हों
सरित
सरिता
का जल। <br>
पर न कुटिल आक्षेप जगत के करने आवें हमें विकल।। <br><br>
Anonymous user
Ramadwivedi