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20:57, 13 अप्रैल 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अज्ञेय
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<poem>
अरे भैया, पंडिज्जी ने पोथी बन्द कर दी है।
पंडिज्जी ने चश्मा उतार लिया है
पंडिज्जी ने आँखें मूँद ली हैं
पंडिज्जी चुप-से हो गये हैं।
भैया, इस समय
पंडिज्जी
फ़कत आदमी हैं।
</poem>