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<Poem>
जब हाथी नहाता है
हम देखते हैं सिर्फसिर्फ़एक घना अँधेरा अंधेरा पर्दा छाते की तरह औरएक उतुंग सूंड उत्तुंग सूंड़ पाइप की तरह
अब मछलियाँ नाचने लगती हैं चारों ओर
उसके पृष्ट पर लगी हुई धूल
तांबें में सने सोने की तरह चमकती है
कीचड़प्लावित कीचड़-प्लावित तालाब लहराने लगता है
एक जंगली सोते की तरह
हमारे त्योहार
व्याकुल कर देने की हद तक
तुच्छ दिखाई देते हैं...साजोसामानसाजो-सामान
से प्रसन्न नहीं होता हाथी
आप उसे रोते देख सकते हैं
पर्वों की शोभायात्राओं शोभा-यात्राओं में
हाथियों और मनुष्यों की नियति पर विलाप करते हुए
जब हाथी नहाता है
गर्मी उस सूँड सूँड़ में से होती हुई गम गुम हो जाती है
और मानसून आ जाता है
वन्य चांदनी उन आखों आँखों में
समा जाती है
पानी गाता है हिंडोल
तालाब में उसके एक डबाक पर
समग्र जंगल की खुशबूख़ुशबू
एक फूल में
लोगों को दीवाना कर देती है
प्यार बंदिशें तोड़ देता है खुद ख़ुद की
आज़ादी बिगुल बजाती है
और अक्षर उसकी सूंडों को उठा देते हैं ऊपर
वसंत के स्वागत में।
'''मूल मलयालम से स्वयं कवि द्वारा अंग्रेजी अंग्रेज़ी में अनूदित. अनूदित। अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद: व्योमेश शुक्ल
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