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कवि: [[माखनलाल चतुर्वेदी]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी]] |संग्रह= ~*~*~*~*~*~*~*~ }}<poem>
हम कहते हैं बुरा न मानो,
यौवन मधुर सुनहली छाया।
 
 
सपना है, जादू है, छल है ऐसा
 
पानी पर बनती-मिटती रेखा-सा,
 
मिट-मिटकर दुनिया देखे रोज़ तमाशा।
 
यह गुदगुदी, यही बीमारी,
 
मन हुलसावे, छीजे काया।
 
हम कहते हैं बुरा न मानो,
 
यौवन मधुर सुनहली छाया।
 
 
वह आया आँखों में, दिल में, छुपकर,
 
वह आया सपने में, मन में, उठकर,
 
वह आया साँसों में से स्र्क-स्र्ककर।
 
 
हो न पुरानी, नई उठे फिर
 
कैसी कठिन मोहिनी माया!
 
हम कहते हैं बुरा न मानो,
 
यौवन मधुर सुनहली छाया।
</poem>
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