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20:29, 17 अप्रैल 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=
}}
<Poem>
नीम की ओट में जो कई खेल खेले,
चुभे पाँव में शूल बनकर बहुत दिन.
कामना के युवा पाहुने जो कुंवारे ,
बसे प्राण में भूल बनकर बहुत दिन..
कंटकों के , तृणों के ,उगे चिह्न सारे,
खिले देह में फूल बनकर बहुत दिन.
स्वप्न वे सब सलोने कसम वायदे वे,
उडे राह में धूल बनकर बहुत दिन ..
</poem>