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जनता विकल पुकार उठी, 'जय महाराज अंगेश।
सूत-पुत्र किस तरह चला पायेगा कोई राज?'
नर का गुण उज्जवल चरित्र है, नहीं वंश-धन-धान।
निज आँखों से नहीं सुझता, सच है अपना भाल।
थके हुए होगे तुम सब, चाहिए तुम्हें आराम।'
कहते हुए -'पार्थ! पहुँचा यह राहु नया फिर कौन?
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