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आगे चले चलो / वृन्दावनलाल वर्मा
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05:29, 20 अप्रैल 2009
<Poem>
अपवाद भय या कीर्ति प्रेम से निरत न हो,
य्दि
यदि
ख़ूब सोच-समझ कर मार्ग चुन लिया।
प्रेरित हुए हो सत्य के विश्वास, प्रेम से,
तो धार्य नियम, शौर्य से आगे चले चलो।
अनिल जनविजय
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