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अवशेष / ऋषभ देव शर्मा

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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
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}}
<Poem>

रिश्ते सब टूट गए

खून के,

दूध के

और परस्पर झूठे पानी के।


ठेके ही बाकी हैं

कुर्सी के,

धर्म के,

माफिया गिरोहों के।।



</poem>