|संग्रह= रश्मिरथी / रामधारी सिंह "दिनकर"
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रखा चाहता हूँ निष्कंटक बेटा! तेरी राह।
अर्जुन! तेरे लिये कभी यह हो सकता है काल!
रखना ध्यान विकट प्रतिभट का, पर तू भी हे तात!'
गलबाँही दे चले परस्पर दुर्योधन औ' कर्ण।
विरम गया क्षण एक क्षितिज पर गति को छोड़ विमान।
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