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<Poem>

ओ नृशंस प्रभु!

क्यों किया तूने ऐसा

कि अपनी ही संतान को

बलिपशु बना डाला

अपनी अधिकार-लिप्सा के हेतु ?

क्यों अपना शासन बनाए रखने को

क्षमा कर दिया तूने

सहोदर के हत्यारे काइन को ?

क्यों दिया तूने

पाप को संरक्षण

अपनी महत्ता को स्थिर रखने हेतु ?

क्यों की तूने गंधक

और आग की वर्षा

हरे भरे सदोम और अमोरा नगरों पर

अपना अस्तित्व मनवाने को ?

क्यों लड़ा दिया तूने

आदमी की एक नस्ल को

आदमी की दूसरी नस्ल से

इस तरह कि

एक नस्ल मनाती रही

फसह का पर्व - निरपेक्ष रहकर

और दूसरी नस्ल के

सब जेठे बेटे और जानवर भी मार डाले तूने

व्यक्तिगत प्रतिशोध में ?

क्यों विवश किया मूसा को तूने

कि वह समुद्र जल में डुबो दे

उस देश को

जो तेरे समक्ष नहीं झुका

और जिसने नहीं किया तेरा स्तुति गान ?


मनुष्यता के विरुद्ध

इतने अपराधों के स्रष्टा ओ नृशंस!

बड़ा नकली लगता है जब पर्वत शिखर पर से

तू देता है प्रेम का संदेश

अपने किसी पुत्र के मुँह से।।







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