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अवशेष / ऋषभ देव शर्मा
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22:14, 21 अप्रैल 2009
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<Poem>
रिश्ते सब टूट गए
खून के,
दूध के
और परस्पर झूठे पानी के।
ठेके ही बाकी हैं
कुर्सी के,
धर्म के,
माफिया गिरोहों के।।
</poem>
अनिल जनविजय
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