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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
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<Poem>
अपने हक़ में वोट दिलाके, क्या उत्ती के पाथोगे
दिल्ली के दरबार में जाके, क्या उत्ती के पाथोगे

कुलपतियों की मेज़ तोड़के , लड़के डिस्को करते हैं
ऐसे में इस्कूल खुलाके, क्या उत्ती के पाथोगे

पाँच साल के बाद आज वे, अपने गाँव पधारे हैं
ऐसे नेता को जितलाके, क्या उत्ती के पाथोगे

लंबे कुर्तों के नीचे जो, पहने हैं राडार कई
उन यारों से हाथ मिलाके, क्या उत्ती के पाथोगे

बंदूकों से डरे हुए जो, सन्दूकों में भरे हुए
ऐसों को मुखिया बनवाके, क्या उत्ती के पाथोगे

शैतानों की नरबलियों में, शामिल है भगवान् यहाँ
भला यहाँ मन्दिर चिनवाके,क्या उत्ती के पाथोगे

मुझ गंवार का प्रश्न यही है, संसद से, सचिवालय से
लोक गंवाके तंत्र बचाके,क्या, उत्ती के पाथोगे </Poem>