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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
आज हाथों को सुनो आरी बना लो साथियो
धूप के दुश्मन बड़े वट काट डालो साथियो

सिर्फ़ नारों को हवा में, मत उछालो साथियो
बोझ सबका साथ मिलकर सब उठालो साथियो

रौंदते सारी फ़सल को जानवर जो घूमते
सींग थामो और खेतों से निकालो साथियो

नाग डसने लग रहे हैं देह धरती की, सुनो
तुम गरुड़ बनकर इन्हें अब कील डालो साथियो

रोटियाँ ऐसे सड़क पर तो पड़ी मिलती नहीं
जो महासागर, उन्हीं की तह खँगालो साथियो

जो अँधेरे में भटकती पीढ़ियों का ध्रुव बने
दीप अपने रक्त से वह आज बालो साथियो

सो गए तो याद रखना, देश फिर लुट जायगा
अब उठो हर मोर्चे को खुद सँभालो साथियो</Poem>