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पर्दा हट जाता है / सुनील गंगोपाध्याय
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10:17, 27 अप्रैल 2009
हू-हू कर घुस रही है स्वच्छ हवा
कुछ ग्लानि पोंछकर...
उन्नीसवीं सदी करवट
दिलकर
बदलकर
सो जाती है।
'''मूल बंगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी
</poem>
Banerjee utpal
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