Changes

खून के घड़े / ऋषभ देव शर्मा

5 bytes removed, 17:16, 27 अप्रैल 2009
}}
<Poem>
 
किसानों के खून के घड़े
इसी जमीन में
दबे पड़े!
 
जिसने उपजाया अन्न,
विश्वासघातिनी झंझाओं से
कितना और लड़े?
 
बहुत राजा ने पिलाया
कल्पतरु के पात सब
पीले पड़े!
 
जो चढ़े सिहासनों पर
वही शासक धरा का,
वह धराधिप हो!
 
वही दुष्काल के आगे अड़े!!
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,627
edits