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चित्र हमने हैं उकेरे आँधियों में भी दियों के,
आँधियों में भी दियों हमें अनदेखा करो मत फूल हैं हम हाशियों के,
हमें अनदेखा करो मत
फूल हैं हम हाशियों के ।
करो तो महसूस, भीनी गंध है फैली हमारी,
हैं हमी में छुपे, तुलसी – जायसी, मीरा – बिहारी,
करो तो महसूस, हमें चेहरे छल न सकते धर्म के या जातियों के ।
भीनी गंध है फैली हमारी,
हैं हमी में छुपे,
तुलसी – जायसी, मीरा – बिहारी,
मंच का अस्तित्व हम से हम भले नेपथ्य में हैं,
माथे की सलवटों सजते ज़िंदगी के कथ्य में हैं,
धूप हैं मन की, हमीं हैं, मेघ नीली बिजलियों के ।
हमें चेहरे छल न सकते
धर्म के या जातियों के ।
सभ्यता के शिल्प में हैं सरोकारों से सधे हैं,
कोख में कल की पलें हैं डोर से सच की बँधे हैं,
मंच का अस्तित्व इन्द्रधनु के रंग हैं, हम से रंग उड़ती तितलियों के ।
हम भले नेपथ्य में हैं,
माथे की सलवटों सजते वर्णमाला में सजे हैं क्षर न होंगे अग्नि-अक्षर,
ज़िंदगी के कथ्य में एक हरियाली लिये हम बोलते हैंमौन जल पर,
   धूप हैं मन की, हमीं हैं,  मेघ नीली बिजलियों के ।     सभ्यता के शिल्प में हैं  सरोकारों से सधे हैं,  कोख में कल की पलें हैं  डोर से सच की बँधे हैं,     इन्द्रधनु के रंग हैं,  हम रंग उड़ती तितलियों के ।     वर्णमाला में सजे हैं  क्षर न होंगे अग्नि-अक्षर,  एक हरियाली लिये हम  बोलते हैं मौन जल पर,     है सरोवर आँख में,  हम स्वप्न तिरती मछलियों के ।