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क्या राज़ था कि जिस को छिपाकर चले गये
रग -रग में इस तरह वो समा कर चले गये
जैसे मुझ ही को मुझसे चुराकर चले गये
इक आग सी वो और लगा कर चले गये
लब थर-थरा थरथरा के रह गये लेकिन वो ऐ "ज़िगर"
जाते हुये निगाह मिलाकर चले गये
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