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17:34, 2 मई 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>सुनो, बग़ावत कर रहे अब सरसों के खेत
पीली-पीली आग नव जागृति का संकेत
जो फसलों को रौंदते, फिरते अब तक प्रेत
गेहूँ की बाली प्रखर गुभ-चुभ करें अचेत
लोमड़ियाँ बसती रहीं, खोद मटर के खेत
फलियों! तुम इस बार वे, खंडित करो निकेत
पानी उनके घर गया, खेत हो गये रेत
‘होले’ से गोले बने, चने श्याम औ’ श्वेत
करवट ले खलिहान ही, बाली-फूल समेत
मौसम कहे पुकार कर, रामचेत! अब चेत </Poem>