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|रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’'पंकिल'}}{{KKPageNavigation|पीछे=मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' पृष्ठ 18|आगे=मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' पृष्ठ 20|सारणी=मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल'
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भर जाते नख शिख पावस घन विकल बरसने को मधुकर
जितनी प्यासी भू उतने ही प्यासे हैं नीरद निर्झर