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{{KKRachna
|रचनाकार=जिगर मुरादाबादी
}}<poem>
[[Category:ग़ज़ल]]
दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल उनको सुनाई न गई
बात बिगड़ी थी कुछ ऐसी कि बनाई न गई
सब को हम भूल गए जोश-ए-जुनूँ में लेकिन एक इक तेरी याद थी ऐसी कि भुलाई न गई
इश्क़ पर कुछ न चला दीदा-ए-तर का जादू
क्या उठायेगी सबा ख़ाक मेरी उस दर से
ये क़यामत तोख़ुद तो ख़ुद उन से भी उठाई न गई</poem>
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