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|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर" }}{{KKPageNavigation|पीछे=रश्मिरथी / प्रथम सर्ग / भाग 6|आगे=रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 1|संग्रहसारणी= रश्मिरथी / रामधारी सिंह "दिनकर"
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'जनमे नहीं जगत् में अर्जुन! कोई प्रतिबल तेरा,
नहीं उठाये भी उठ पाते थे कुन्ती के पाँव।
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