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|रचनाकार= रामधारी सिंह "दिनकर" }}{{KKPageNavigation|पीछे=रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 9|आगे=रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 11|संग्रहसारणी=रश्मिरथी / रामधारी सिंह "दिनकर"
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'छल से पाना मान जगत् में किल्विष है, मल ही तो है,
पर तुझ-सा जिज्ञासु आज तक कभी नहीं मैंने पाया।
 
 
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