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|रचनाकार=रामधारी सिंह '"दिनकर'"}}{{KKPageNavigation|पीछे=रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 10|आगे=रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 12|संग्रहसारणी= रश्मिरथी / रामधारी सिंह '"दिनकर'"
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'तू ने जीत लिया था मुझको निज पवित्रता के बल से,
है यह मेरा शाप, समय पर उसे भूल तू जायेगा।
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